निकले थे हम उस रोज,जब खुद के घर से बेघर कर् दिए गए थे | निकले हैं हम आज भी जब खुद के ही घर, बेघर हो गए ।जो अपने साथ लेकर चलते है ,उन्हें जिंदगी जीने की क्या सलाह दी जा सकती है ? लॉकडाउन के पैदल अपने गांव और शहरो निकल पड़े प्रवासी मजदूरो को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी लड़ाई तेज हो गयी ह जो की बेहद निन्दनीय है|
दो दिन पहले जो वीडियो कॉन्फ्रेंस हुई उसमे कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के मजदूरों से मिलने पर वित् मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह ड्रामा है और इससे मजदूरों का टाइम ही ख़राब हुआ है | इस भाषण के बाद कांग्रेस के कई नेताओ ने पलटवार किया,लेकिन किसी को भी इन मजदूरों की हालत पर तराश नहीं अत है |
हर रोज एक नई कहानी निकल कर आती हैं | कहीं लोग भूख से ,कहीं चलते चलते,कहीं धूप से तो कहीं दुर्घटना में मर रहे है|
बिहार के भागलपुर में एक और भीषण सड़क हादसा हुआ है. नौगछिया में मजदूरों से भरी ट्रक और बस की टक्कर हो गई. इस हादसे में 9 मजदूरों की मौत हो गई है, जबकि कई मजदूर घायल बताए जा रहे हैं. मौके पर प्रशासन के आला अधिकारी पहुंच गए हैं और घायलों को अस्पताल पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो गया है.| मौके पर मौजूद प्रशासन क अधिकारियों के मुताबिक, ट्रक में मजदूर भरे थे. बस से टक्कर के बाद ट्रक पलट गई और खाई में जा गिरी. मौके पर ही 9 लोगों की मौत हो गई है. बाकी घायलों को निकालने का सिलसिला शुरू हो गया है. उन्हें नजदीकी अस्पताल में एडमिट कराया जा रहा है.
शुरू से ही श्रमिक ट्रैन को लेके काफी बयानबाजी की जा रही हैं | एक रिपोर्ट के अनुसार लोकडाउन से पहले भारत की ट्रेनें प्रतिदिन 3 करोड़ यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाया जाता था लेकिन जब भरी आयी मजदूरों की तो एक लम्बी और जटिल प्रकिर्या के बावजूद भी सिर्फ लाखो की संख्या में ही मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाया जा रहा है जबकि रेल प्रशासन चाहे तो अब तक करोड़ो की संख्या में लोगो को पहुंचाया जा सकता था | लेकिन सिर्फ लाखों के आंकड़ों को भी उपलब्धि के रूप में पेश किया जा रहा हैं |
किसी न्यूज़ चैनल पर दिखाए गए इस विडिओ क्लिप को देखिये जिसमे मजदूर अपनी दर्द भरी व्यथा बता रहे है-
मजदूर हर रोज संख्या में बिना कुछ खाये-पिए एक जगह से दूसरी जगह अपने घरो तक जाने मिलो की दूरिया तय कर रहे है | जो मजदुर कल तक गांव इकॉनमी रहे थे , आज वो खुद दाने-दाने को मोहताज हो रहे हैं और एक अनजान जिंदगी की और चलते है, ये सोच कर की शायद इनके हालत में थोड़ा सुधार आएगा |
सरकार और मीडिया भले ही रोज नई-नई योजनाओ को बड़ा चढ़ा कर बता रही हो ,लेकिन बात तो तब बने जब इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर जल्द-से-जल्द लागु किया जाये | और इन मजदूरों को सही सलामत इनके घर-परिवार के पास पहुंचाया जाये तथा इनको भविष्य को भी सुढ़ृड़ बनाये जाये |
क्या इन मजदूरों का इतना भी अधिकार नहीं है ,कि वे सुरक्षित अपने घर पहुंच जाये ?
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