चुनरीवाला माताजी(प्रहलाद जानी) का रहस्यमय जीवन??


Miracle happens if you have strong faith

      चुनरीवाला माताजी: रहस्यवादी योगी, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 76 वर्षों तक भोजन या पानी का सेवन नहीं किया, उनका 90 वर्ष की उम्र में गांधीनगर के चरदा गाँव में निधन हो गया।
योगी प्रहलाद जानी, जिन्हें चुनरीवाला माताजी के नाम से भी जाना जाता है, का निधन 26 मई मंगलवार को गुजरात में हुआ था । उनका पार्थिव शरीर उनके आश्रम-सह-गुफा में गुजरात के अंबाजी मंदिर के पास उनके अनुयायियों को उनके अंतिम सम्मानों का भुगतान करने से पहले रखा गया है, क्योंकि उन्हें दो दिनों में समाधि दी जाएगी।
Key highlights-

  • चुनरीवाला माताजी ने बहुत कम उम्र में अपने पैतृक घर को छोड़ दिया और अंबाजी मंदिर के पास एक छोटी सी गुफा का निर्माण किया जहाँ वे रहते थे।
  •  उन्होंने कहा कि उन्होंने 14 साल की उम्र से खाना या पानी पीना बंद कर दिया था और केवल हवा में जीवित रहे।
  •  उन्होंने गुजरात के अंबाजी मंदिर के पास एक गुफा का निर्माण किया और वहीं रहता थे ।

        दैनिक क्रियाओं को भी योग की शक्ति से रोक देने की वजह से चिकित्सा विज्ञान के लिए एक चुनौती बन गए थे ।प्रहलाद जानी स्वयं कहते थे कि यह तो दुर्गा माता का वरदान हैं, 'मैं जब 12 साल का था, तब कुछ साधू मेरे पास आए। कहा, हमारे साथ चलो, लेकिन मैंने मना कर दिया। करीब छह महीने बाद देवी जैसी तीन कन्याएं मेरे पास आयीं और मेरी जीभ पर अंगुली रखी। तब से ले कर आज तक मुझे न तो प्यास लगती है और न भूख।'
      चराड़ा गांव निवासी प्रहलाद भाई जानी कक्षा तीन तक पढे़ लिखे थे । जानी का दावा था  कि दैवीय कृपा तथा योग साधना के बल पर वे करीब 76  वर्ष से बिना कुछ खाए पिए-जिंदा थे ।
मल मूत्र भी नहीं बनता : इतना ही नहीं मल-मूत्र त्यागने जैसी दैनिक क्रियाओं को योग के जरिए उन्होंने रोक रखा थ । स्टर्लिंग अस्पताल के न्यूरोफिजिशियन डॉ. सुधीर शाह ने बताया  था  कि  जानी के ब्लैडर में मूत्र बनता है, लेकिन कहां गायब हो जाता है इसका पता करने में विज्ञान भी अभी तक विफल ही रहा है।

क्या कहता है विज्ञान?
      डॉक्टरों का मानना है कि कोई भी वयस्क व्यक्ति बिना खाना खाए 30 से 40 दिन तक जीवित रह सकता है। लेकिन बिना पानी के पांच दिन से ज्यादा जिन्दा रहना सम्भव ही नहीं है। अभी तक उपलब्ध आंकणों के अनुसार 1981 में उत्तरी आयरलैण्ड में कैदियों ने भूख हड़ताल की थी, जिसमें 10 कैदियों की मृत्यु हो गई थी। उन कैदियों में सिर्फ एक व्यक्ति ही 73 दिन बिना खाए-पिए जिंदा रह पाया था।
कुल मिलाकर विज्ञान और आध्यात्म के बीच फंसी ये पहेली सुलझने के बजाय और उलझती  रही । प्रहलादभाई के मुताबिक दूसरे देशों के कई डॉक्टर भी उन्हें अपने यहां बुलाकर रिसर्च करना चाहते थे , लेकिन वो अपना देश छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहते थे ।
     सीसीटीवी की निगाह में रखा कई दिन : भारत के डॉक्टर 2003 और 2005 में भी प्रहलाद जानी की अच्छी तरह जांच-परख कर चुके थे । इन जाचों के अगुआ रहे अहमदाबाद के न्यूरॉलॉजिस्ट (तंत्रिकारोग विशेषज्ञ) डॉ. सुधीर शाह ने कहा, 'उनका कोई शारीरिक ट्रांसफॉर्मेशन (कायाकल्प) हुआ है। वे जाने-अनजाने में बाहर से शक्ति प्राप्त करते हैं। उन्हें कैलरी (यानी भोजन) की जरूरत ही नहीं पड़ती। हमने तो कई दिन तक उनका अवलोकन किया, एक-एक सेकंड का वीडियो लिया। उन्होंने न तो कुछ खाया, न पिया, न पेशाब किया और न शौचालय गए।'
     22 अप्रैल 2011 को प्रहलाद जानी डॉक्टरी जाँच-परख के लिए एक बार फिर अहमदाबाद के एक अस्पातल में 15 दिनों तक भर्ती थे। इस बार भारतीय सेना के रक्षा शोध और विकास संगठन का शरीरक्रिया। विज्ञान संस्थान DIPAS जानना चाहता था कि प्रहलाद जानी के शरीर में ऐसी कौन सी क्रियाएं चलती हैं कि उन्हें खाने-पीने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती।
   तीस डॉक्टरों की एक टीम ने तरह-तरह की डॉक्टरी परीक्षाएं कीं। मैग्नेटिक रिजोनैंस इमेजींग मशीन से उन के शरीर को स्कैन किया। हृदय और मस्तिष्क क्रियाओं को तरह तरह से मापा। रक्त परीक्षा की, दो वीडियो कैमरों के द्वारा चौबीसो घंटे प्रहलाद जानी पर नजर रखी। जब भी वे अपना बिस्तर छोड़ते, एक वीडियो कैमरा साथ-साथ चलता। तत्पश्चात यह पाया कि प्रहलाद जानी का दावा एकदम सच है। वे सचमुच बिना खाना और पानी के न सिर्फ जिंदा थे  बल्कि पूरी तरह से स्वस्थ भी थे ।
10 दिन की पड़ताल के बाद तीन सौ डॉक्टरों की टीम ने रिपोर्ट दी कि-
1. 10 दिन तक प्रह्लादभाई ने कुछ नहीं खाया, यहां तक की पानी भी नहीं पीया
2. 10 दिन बाद भी उनके शरीर के सभी अंग पहले की तरह काम कर रहे हैं
3. दिल की धड़कनों में कोई खास बदलाव नहीं आया
4. पेट की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में भी कुछ गड़बड़ी नहीं
5. दिमाग के एमआरआई में भी कुछ खास नहीं निकला
6. सीने का एक्स-रे भी सामान्य रहा
7. 10 दिन भूखे रहने पर कोई असर नहीं
8. हीमोग्लोबीन के स्तर में कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
डॉ. अब्दुल कलाम ने क्या कहा था इस बारे में-

    पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी इसमें रुचि दिखाई थी। यदि माताजी के ऊर्जा का स्रोत का पता चल जाता है तो शायद यह अंतरिक्ष यात्रियों एवं सेना के जवानों के लिए कारगर साबित होगा। यदि जानी के ऊर्जा स्रोत का पता चल जाता है तो चिकित्सकों का दावा है कि इससे अंतरिक्ष यात्रियों तथा सेना के जवानों की खाद्य समस्या हल हो सकती है साथ ही अकाल एवं भुखमरी जैसी समस्या को भी समाप्त किया जा सकता है।
प्रहलाद जानी अपनी आयु के आठवें दशक में भी नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं और ध्यान लगाते हैं। योगी-ध्यानी व्यक्तियों में चमत्कारिक गुणों की कहानियों पर भारत में लोगों को आश्चर्य नहीं होता, पर विज्ञान उन्हें स्वीकार नहीं करता।

आज भी भारत की धरती पर ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने कई वर्षों से भोजन नहीं किया, लेकिन वे सूर्य योग के बल पर आज भी स्वस्थ और जिंदा हैं। भूख और प्यास से मुक्त सिर्फ सूर्य के प्रकाश के बल पर वे जिंदा हैं।

प्राचीनकाल में ऐसे कई सूर्य साधक थे, जो सूर्य उपासना के बल पर भूख-प्यास से मुक्त ही नहीं रहते थे बल्कि सूर्य की शक्ति से इतनी ऊर्जा हासिल कर लेते थे कि वे किसी भी प्रकार का चमत्कार कर सकते थे। उनमें से ही एक सुग्रीव के भाई बालि का नाम भी लिया जाता है। बालि में ऐसी शक्ति थी कि वह जिससे भी लड़ता था तो उसकी आधी शक्ति छीन लेता था।

वर्तमान युग में प्रहलाद जानी इस बाद का पुख्ता उदाहरण है कि बगैर खाए-पीए व्यक्ति जिंदगी गुजार सकता है। गुजरात में मेहसाणा जिले के प्रहलाद जानी एक ऐसा चमत्कार बन गए हैं जिसने विज्ञान को चौतरफा चक्कर में डाल दिया है। वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ऐसा कैसे संभव हो रहा है?

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